ओढने का चद्दर (खेश)
Vidhyashish हथकरघा
द्वारा उत्पाद
Size: 60×100
Fabric: Cotton
मूल्य : ₹350 ₹300 *कर शामिल है
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हथकरघा से निर्मित शर्ट- कुर्ते का सूती कपड़ा
Vidhyashish हथकरघा
द्वारा उत्पाद
हथकरघा के माध्यम से विभिन्न रंगों के धागों के कुशल संयोजन द्वारा "विद्याशीष हथकरघा, आंवा" के दक्ष बुनकरों द्वारा निर्मित शत प्रतिशत सूती कपड़ा। कमीज (शर्ट) तथा कुर्ता/कुर्ती दोनो के लिए उपयुक्त। विभिन्न प्रकार की बनावट (डिज़ाइन) में उपलब्ध। बहुरंगी सूती धागों के माध्यम से चमकदार डिज़ाईन (Self-Design).
मूल्य : ₹350 ₹300 *कर शामिल है
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हथकरघा से निर्मित सूती धोती-दुपट्टा
Vidhyashish हथकरघा
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मन्दिर में भगवान के अभिषेक-पूजन एवं साधु-संतों को आहारदान के समय पुरुषों के पहनने हेतु शत प्रतिशत सूती वस्त्र (बच्चों एवं वयस्क पुरुषों दोनो के लिए उपलब्ध)
मूल्य : ₹1200 ₹1100 *कर शामिल है
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हस्तनिर्मित सूती तौलिया
Vidhyashish हथकरघा
द्वारा उत्पाद
Product reviews:
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हथकरघा पर ताने-बाने के कुशल संयोजन द्वारा विद्याशीष हथकरघा, आंवा के कुशल बुनकरों द्वारा निर्मित शत प्रतिशत सूती तौलिया/टॉवेल
मूल्य : ₹350 ₹265 *कर शामिल है
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प्राकृतिक और शुद्ध इंडिगो डाई
इंडिगो डाई एक विशिष्ट नीले रंग के साथ एक कार्बनिक यौगिक है। प्राकृतिक नील विभिन्न प्रकार के पौधों से प्राप्त किया जाता है, सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला इंडिगोफेरा टिनक्टोरिया है। यह झाड़ी जंगली होती है और दुनिया भर के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में खेती की जाती है।
मुझे और बताएँहैंडलूम हैंडस्पिन इनोवेशन
तकली से सूत कातना एक साधना है जिससे आप तनाव को खत्म कर सकते हो।
तकली (पतले सिरों वाली एक पतली गोल छड़ जिसे हाथ से कताई में इस्तेमाल किया जाता है और एक डिस्टैफ़ पर रखे ऊन या सन के द्रव्यमान से मोड़ और हवा के धागे को घुमाया जाता है।)
तकली से सूत बनाने की क्रिया तकली को उंगलियों से नचाकर की जाती थी।
गांधी जी ने आर्थिक स्वतंत्रता के लिए “स्वेदशी” का आह्वान किया। चरखा कातना उसी स्वदेशी का एक दैनिक उदाहरण था, “प्रतीक” था, एक विराट धर्म नीति थी। जिसका उद्देश्य मनुष्य को मुक्ति देना था। वे “आखिरी आदमी” को अपना लक्ष्य मानते थे।
आज गांधी जी नहीं रहे। उनके मूल्य भी एक-एक कर दरकिनार किए जा रहे हैं। सारी दुनियां का परिदृश्य हमारे सामने है। विज्ञान की ध्वांसात्मक तकनीक का अमानवीय रूप, बेशुमार दौलत पाने की अदम्य लिप्सा और बहुराष्ट्रीय कंपनियों का नंगा नाच, हिंसा और आतंकवाद का बोलबाला, लोकतंत्र के हत्यारों का वर्चस्व, साम्प्रदायिकता, जातिवाद, अशिक्षा, गरीबी, अशांति और शोषण ... सब है हमारे सामने। इन सबके बारे में किसे सोचना है !
गांधी जी कहते थे – मैं भोजन के बिना तो रह लूंगा, मगर चरखे के बिना नहीं रह सकता। जब मैं चरखे पर सूत कातता हूँ, उस समय मुझे गरीब की याद आती है। गांधी जी की मान्यता थी कि चरखा कातने में ही देश के लाखों लोगों को रोजगार मिल सकता है। इसमें कम पूँजी की भी जरूरत पड़ती है।