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हथकरघा, भारत में वस्त्र निर्माण की परंपरागत तकनीक/उद्योग है, जिसमें हाथ-पैर द्वारा संचालित मशीनों के माध्यम से धागों को अपने कौशल एवं हुनर का प्रयोग करते हुए आकर्षक वस्त्र बनाए जाते हैं। ऐसी तकनीक जिसमें लोगों ने अपने हुनर एवं कौशल को ही आजीविका का साधन बनाया एवं देश की उत्तरोत्तर प्रगति में मजबूत स्तम्भ की भांति सहयोग किया परंतु कई कारणों यथा बढ़ते मशीनीकरण, रोजगार के अन्य अवसरों की ओर झुकाव तथा पलायनवादी संस्कृति इत्यादि की वजह से विलुप्ति की कगार पर आ चुकी है।

आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत ग्रामीण अर्थव्यवस्था के सुदृढ़ीकरण तथा स्वावलंबन की भावना जगाने के लिए इस उद्योग के पुनर्जीविकरण की आज जरूरत महसूस की जा रही है।

इसी सोच के साथ ग्राम विकास की अवधारणा एवं पलायनवादी संस्कृति को रोककर गांवो में ही सम्मानपूर्वक रोजगार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से जैनाचार्य संत शिरोमणी गुरुवर श्री विद्यासागर जी महाराज की प्रेरणा एवं मुनि पुंगव श्री सुधासागर जी महाराज के पावन आशीर्वाद से "आचार्य विद्यासागर हथकरघा प्रशिक्षण एवं उत्पादन केंद्र, आंवा" की स्थापना 2016 में की गई। सर्वप्रथम यहां ग्रामीण क्षेत्र के युवाओं को हथकरघा का प्रशिक्षण देकर उन्हें कौशल प्रदान किया जाता है तत्पश्चात इस केंद्र पर प्रशिक्षित बुनकर भाइयों द्वारा दक्षतापूर्ण निर्मित उत्पाद "विद्याशीष हथकरघा, आंवा" के नाम से विक्रय किये जाते है। हथकरघा का प्रशिक्षण देकर कौशल का विकास करने एवं श्रम-बल निर्माण करने का यह राजस्थान में प्रथम एवं एकमात्र केन्द्र है।

इस केन्द्र पर शुरुआत में 2 माह का निःशुल्क प्रशिक्षण दिया जाता है और इस प्रशिक्षण अवधि के दौरान उनके श्रम के सम्मान के रूप में एक न्यूनतम राशि भी दी जाती है। हमारा मुख्य लक्ष्य श्रम के शोषण को रोककर श्रम का सम्मान करना है। शहरों की ओर पलायन कर चुके कई युवा स्वावलंबन के इस प्रक्रम से प्रेरित होकर पुनः गांव की ओर लौट चुके है तथा अपने आत्मविश्वास को पुनः प्राप्त कर परिवार, समाज एवं गांव के प्रति अपनी सकारात्मक भूमिका निभा रहे है।

स्थापना के मात्र 2 वर्ष के अंदर ही यहां बनी सूती साड़ी के लिए 2019 में राजस्थान सरकार द्वारा "राज्य बुनकर पुरस्कार" प्राप्त करने का गौरव भी इस केंद्र को प्राप्त है। इसके अतिरिक्त यहां के बुनकर भाई-बहनों को जिला स्तरीय बुनकर पुरस्कार से भी नवाजा गया है।

विद्याशीष हथकरघा का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्र के युवा/युवतियों की क्षमता को पहचान कर उन्हें हथकरघा के सभी पहलुओं जैसे- ताना बनाना/भराई, बुनाई, हस्तकला-हस्तशिल्प, हथकरघा उपकरणों की जानकारी एवं मरम्मत, धागे की जानकारी, गुणवत्ता नियंत्रण इत्यादि में पारंगत करना है। यही युवा पीढ़ी अपने आगे आने वाले जीवनकाल में इस कला को अधिकतम लोगों तक पहुंचा पाएगी।

हम, विद्याशीष हथकरघा के माध्यम से मात्र 5 वर्ष के लघु समय में लगभग 45 युवा-युवतियों को हथकरघा में प्रशिक्षित कर चुके है। जो अब स्वावलम्बी बनकर सम्मानपूर्वक अपना जीविकोपार्जन कर रहे है और श्रम की महत्ता जन-जन तक भी पहुंचा रहे है।