प्राकृतिक और शुद्ध इंडिगो डाई
इंडिगो डाई एक विशिष्ट नीले रंग के साथ एक कार्बनिक यौगिक है। प्राकृतिक नील विभिन्न प्रकार के पौधों से प्राप्त किया जाता है, सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला इंडिगोफेरा टिनक्टोरिया है। यह झाड़ी जंगली होती है और दुनिया भर के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में खेती की जाती है।
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तकली से सूत कातना एक साधना है जिससे आप तनाव को खत्म कर सकते हो।
तकली (पतले सिरों वाली एक पतली गोल छड़ जिसे हाथ से कताई में इस्तेमाल किया जाता है और एक डिस्टैफ़ पर रखे ऊन या सन के द्रव्यमान से मोड़ और हवा के धागे को घुमाया जाता है।)
तकली से सूत बनाने की क्रिया तकली को उंगलियों से नचाकर की जाती थी।
गांधी जी ने आर्थिक स्वतंत्रता के लिए “स्वेदशी” का आह्वान किया। चरखा कातना उसी स्वदेशी का एक दैनिक उदाहरण था, “प्रतीक” था, एक विराट धर्म नीति थी। जिसका उद्देश्य मनुष्य को मुक्ति देना था। वे “आखिरी आदमी” को अपना लक्ष्य मानते थे।
आज गांधी जी नहीं रहे। उनके मूल्य भी एक-एक कर दरकिनार किए जा रहे हैं। सारी दुनियां का परिदृश्य हमारे सामने है। विज्ञान की ध्वांसात्मक तकनीक का अमानवीय रूप, बेशुमार दौलत पाने की अदम्य लिप्सा और बहुराष्ट्रीय कंपनियों का नंगा नाच, हिंसा और आतंकवाद का बोलबाला, लोकतंत्र के हत्यारों का वर्चस्व, साम्प्रदायिकता, जातिवाद, अशिक्षा, गरीबी, अशांति और शोषण ... सब है हमारे सामने। इन सबके बारे में किसे सोचना है !
गांधी जी कहते थे – मैं भोजन के बिना तो रह लूंगा, मगर चरखे के बिना नहीं रह सकता। जब मैं चरखे पर सूत कातता हूँ, उस समय मुझे गरीब की याद आती है। गांधी जी की मान्यता थी कि चरखा कातने में ही देश के लाखों लोगों को रोजगार मिल सकता है। इसमें कम पूँजी की भी जरूरत पड़ती है।